5/05/2008

शब्दों से कभी कभी काम नहीं चलता : त्रिलोचन

शब्दों से कभी कभी काम नहीं चलता

जीवन को देखा है
यहाँ कुछ और
वहाँ कुछ और
इसी तरह यहाँ-वहाँ
हरदम कुछ और
कोई एक ढ़ंग सदा काम नहीं करता

तुम को भी चाहूँ तो
छूकर तरंग
पकड़ रखूँ संग
कितने दिन कहाँ-कहाँ
रख लूँगा रंग

अपना भी मनचाहा रूप नहीं बनता ।
( ’ताप के ताये हुए दिन’ से)