5/25/2007

नव दृष्टि : सुमित्रानंदन पंत,( जन्म-२० मई,१९००)

खुल गये छन्द के बन्ध ,
प्रास के रजत पाश,
अब गीत मुक्त,
औ’ युग-वाणी बहती अयास !
बन गये कलात्मक भाव
जगत के रूप-नाम,

जीवन-संघर्षण देता सुख,
लगता ललाम!

सुन्दर, शिव,सत्य
कला के कल्पित माप-मान
बन गये स्थूल,
जग-जीवन से हो एकप्राण!
मानव स्वभाव ही
बन मानव-आदर्श सुकर
करता अपूर्ण को पूर्ण,
असुन्दर को सुन्दर !

"संयोजिता" से

आशी: - त्रिलोचन

पृथ्वी से
दूब की कलाएँ लो
चार

ऊषा से
हल्दिया तिलक

लो

और
अपनें हाथों में
अक्षत लो

पृथ्वी आकाश
जहाँ कहीं
तुम्हें जाना हो
बढ़ो
बढ़ो

('अरधान' से )
त्रिलोचन पर एक लेख