10/26/2005

चार पंक्तियाँ : प्रभाकर माचवे

निर्जन की जिज्ञासा है निर्झर की तुतली बोली में
विटपों के हैं प्रश्नचिन्ह विहगों की वन्य ठिठोली में
इंगित हैं' कुछ और पूछ लूँ' इन्द्रचाप की रोली में
संशय के दो कण लाया हूँ आज ज्ञान की झोली में ।