10/04/2005

वर दे : सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

निराला जी की लिखी कविता 'वर दे' के कुछ अंश :

वर दे वीणावादिनी वर दे।
प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव भारत में भर दे।
काट अंध उर के बंधन स्तर
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष भेद तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे ।
नव गति/नव लय/ताल छंद नव/
नवल कण्ठ/ नव जलद मन्द रव/
नव नभ के/ नव नवल वृन्द को/
नव पर/ नव स्वर /दे ।
वीणा वादिनि वर दे ।