11/28/2005

चार और पंक्तियाँ : प्रभाकर माचवे

जब दिल ने दिल को जान लिया
जब अपना-सा सब मान लिया
तब ग़ैर-बिराना कौन बचा
यदि बचा सिर्फ़ तो मौन बचा !

( तार-सप्तक, से)