सुरभित रचना
’सिर्फ़ पढ़ने के लिये’ यह ब्लाग प्रिय कविताओं का पुलिंदा है । टिप्पणियों के लिये सुलभ नहीं है।
2/23/2008
प्रपात के प्रति : निराला
अंचल
के
चंचल
क्षुद्र
प्रपात
!
मचलते
हुए
निकल
आते
हो
;
उज्जवल
!
घन
-
वन
-
अंधकार
के
साथ
खेलते
हो
क्यों
?
क्या
पाते
हो
?
अंधकार
पर
इतना
प्यार
,
क्या
जाने
यह
बालक
का
अविचार
बुद्ध
का
या
कि
साम्य
-
व्यवहार
!
तुम्हारा
करता
है
गतिरोध
पिता
का
कोई
दूत
अबोध
-
किसी
पत्थर
से
टकराते
हो
फिरकर
ज़रा
ठहर
जाते
हो
;
उसे
जब
लेते
हो
पहचान
-
समझ
जाते
हो
उस
जड़
का
सारा
अज्ञान
,
फूट
पड़ती
है
ओंठों
पर
तब
मृदु
मुस्कान
;
बस
अजान
की
ओर
इशारा
करके
चल
देते
हो
,
भर
जाते
हो
उसके
अन्तर
में
तुम
अपनी
तान
।
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मौसम
मौसम : पिछला
कविता की प्रेरणा और अनुराग
कविता के आनंद की अनुभूति सचमुच व्यक्तिगत है |
यदि आप कविता प्रेमी है तो अपने आनंद का फैलाव आप को प्रफुल्लित कर जाता है जब आप उस कविता को किसी के लिये या अपने लिये पढ़ते हैं।
हमारे परिवार में कविता का अनुराग , रचनाधर्मी साहित्यप्रेमी
पिता
की देन है।
आज भी एक सार्थक रचना को पढ़कर मन प्रसन्न हो उठता है, कभी विचारो को आधार मिलता है तो कभी उद्वेलित मन को आह्लाद।
’ सुरभित रचना’ के संकलन का आधार भी यही है।
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