तेज़ी से जाते हुई कार के पीछे
पथ पर गिरे पड़े
निर्जीव सूखे पीले पत्तों ने भी
कुछ दूर दौड़ कर गर्व से कहा----
’हम में भी गति है,
सुनो, हम में भी जीवन है,
रुको-रुको हम भी
साथ चलते हैं
हम भी प्रगतिशील हैं।’
लेकिन उन से कौन कहे-
प्रगति, पिछलग्गूपन नहीं है
और जीवन, आगे बढ़ने के लिए
दूसरों का मुँह नहीं ताकता ।