शब्दों से कभी कभी काम नहीं चलता
जीवन को देखा है
यहाँ कुछ और
वहाँ कुछ और
इसी तरह यहाँ-वहाँ
हरदम कुछ और
कोई एक ढ़ंग सदा काम नहीं करता
तुम को भी चाहूँ तो
छूकर तरंग
पकड़ रखूँ संग
कितने दिन कहाँ-कहाँ
रख लूँगा रंग
अपना भी मनचाहा रूप नहीं बनता ।
( ’ताप के ताये हुए दिन’ से)
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